hindisamay head


अ+ अ-

कविता

क्या तुम्हें उपहार दूँ

नीरज कुमार नीर


क्या तुम्हें उपहार दूँ,
प्रिय प्रेम के प्रतिदान का

तुम वसंत हो, अनुगामी
जिसका पर्णपात नहीं
सुमन सुगंध सी संगिनी,
राग द्वेष की बात नहीं
शब्द अपूर्ण वर्णन को
ईश्वर के वरदान का
क्या तुम्हें उपहार दूँ,
प्रिय प्रेम के प्रतिदान का

विकट ताप में अंबुद री,
प्रशांत शीतल छाँव सी,
तप्त मरु में दिख जाए,
हरियाली इक गाँव की
कहो कैसे बखान करूँ
पूर्ण हुए अरमान का
क्या तुम्हें उपहार दूँ,
प्रिय प्रेम के प्रतिदान का


मैं पतंग तुम डोर प्रिय,
तुम बिन गगन अछूता है
तुमसे बंधकर जीवन
व्योम उत्कर्ष छूता है
तुम ही कथाकार हो, इस
जीवन के आख्यान का
क्या तुम्हें उपहार दूँ,
प्रिय प्रेम के प्रतिदान का

दिवस लगे त्यौहार सा 
हर यामिनी मधुमास सी
प्रीति तुम्हारी,  उर में 
नित नित भरती आस सी
तुल्य नहीं जग में कोई
अनुराग के परिमाण का 
क्या तुम्हें उपहार दूँ,
प्रिय प्रेम के प्रतिदान का
 


End Text   End Text    End Text